Menstrual leave: सुप्रीम कोर्ट ने मासिक धर्म अवकाश के लिए लगाई गई PIL को ख़ारिज किया
The Supreme Court of India rejects PIL seeking menstrual leave and directed the petitioner to approach the Ministry of Women and Child Development to frame a policy.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में श्रमिकों और छात्रों के लिये मासिक धर्म अवकाश से संबंधित एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय ने इसे एक नीतिगत मामला बताया है | याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को नीति बनाने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करने के लिए कहा है।
मासिक धर्म अवकाश
महिलाओं में होने वाले मासिक घर्म के लिए दो दिन के अवकाश कि मांग कि गई है जिसे मासिक धर्म अवकाश कहा जाता है | यह अवकाश कर्मचारियों और छात्राओं के लिए लागु करने करने कि मांग कि गई है | यह मासिक धर्म चक्र के दौरान महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य कि देखभाल से सम्बंधित है | मासिक धर्म अवकाश जिसे मासिक चक्र अवकाश के रूप में भी जाना जाता है, उन सभी नीतियों को संदर्भित करता है जो महिला कर्मचारियों या छात्राओं को मासिक धर्म में दर्द या परेशानी के कारण अवकाश की अनुमति देता है।
वैश्विक स्तर पर उठाए गए कदम
विश्व स्तर पर मासिक धर्म अवकाश हेतु कई नीतियाँ लागु कि गई हैं | मासिक धर्म अवकाश को बढ़ावा देने वाले देशों में स्पेन, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ताइवान, दक्षिण कोरिया, ज़ाम्बिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम शामिल हैं | ऐसा करने वाला स्पेन पहला यूरोपीय देश है जो महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म में सवेतन अवकाश प्रदान करता है, जिसमें प्रतिमाह तीन दिन का अवकाश अधिकार शामिल है|
भारत में स्थिति
भारत में कुछ कंपनियों ने मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ पेश की हैं जिनमे ज़ोमैटो (Zomato), स्विगी(swiggy) और बायजू (byju’s) भी शामिल है |
बिहार और केरल मात्र ऐसे भारतीय राज्य हैं जिन्होंने महिलाओं हेतु मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ पेश की हैं। बिहार की नीति वर्ष 1992 में पेश की गई थी, जिसमें महिला कर्मचारियों को प्रत्येक महीने दो दिन का मासिक धर्म अवकाश दिया जाता था।
केरल ने हाल ही में घोषणा की कि राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के तहत विश्वविद्यालयों में छात्राओं को मासिक धर्म और मातृत्त्व अवकाश प्रदान किया जाएगा और केरल के एक विद्यालय ने भी इसी प्रकार की प्रणाली शुरू की है।
संसद में मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पाद विधेयक पेश किये गए हैं, लेकिन उन पर मुहर लगना अभी तक बाकी है। उदाहरण के लिये मासिक धर्म लाभ विधेयक (The menstruation benefits bill) 2017′ और महिला यौन, प्रजनन एवं मासिक धर्म अधिकार विधेयक ( women’s sexual, reproductive and menstrual rights bill) 2018
महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य उत्पादों तक मुफ्त पहुँच विधेयक, 2022 (Right of women to menstrual leave and free access to menstrual health products Bill, 2022)
PIL के मुख्य बिंदु
इस याचिका में याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मातृत्व लाभ अधिनियम, (Maternity Benefit Act ) 1961 की धारा 14 के तहत छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म के लिए छुट्टी देने के नियम बनाने के लिए सरकार को निर्देश जारी करने का अनुरोध किया था |
याचिकाकर्ता ने यूके, चीन, वेल्स, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया जैसे देश पहले से ही मासिक धर्म दर्द अवकाश प्रदान किए जाने का जिक्र भी किया |
सरकार का रुख
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियमावली, 1972, जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू होती है, में मासिक धर्म की छुट्टी के लिए प्रावधान नहीं है, और वर्तमान में ऐसी छुट्टी को शामिल करने के लिए किसी प्रस्ताव की जांच नहीं की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के नेतृत्व वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि मासिक धर्म के दर्द की छुट्टी (menstrual pain leave) के अलग-अलग “आयाम” हैं | इसका एक पक्ष यह भी है कि इससे नौकरी देने वाली कंपनियां महिलाओं को काम देने में कम रूचि दिखा सकती हैं |
न्यायालय ने उल्लेख किया कि मासिक धर्म एक जैविक प्रक्रिया है और शैक्षणिक संस्थानों और कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि इस मुद्दे के विभिन्न आयाम हैं, और हम इस मामले का विस्तार से अध्ययन करने और नीति तैयार करने का काम सरकार पर छोड़ देना चाहिए |